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उपलब्धियाँ और सम्मान:-देश की मशहूर कथक डांसर सितारा देवी का जन्म 8 नवंबर 1920 को कलकत्ता के नाथुन बाजार में हुआ था। 5 साल की उम्र में वह पैतृक आवास बनारस के कबीरचौरा आ गई थीं। उनका परिवार मूल रूप से वाराणसी से था। उनके पिता सुखदेव महाराज भी एक कथक नृत्यकार और संस्कृत के विद्वान थे। वहीं माता मत्स्य कुमार के नेपाल के शाही परिवार से संबंध थे। सितारा देवी का निधन 25 नवंबर 2014 में लंबी बीमारी के बाद हो गया था।
पारिवारिक जीवन और बचपन की यादें.....- 'धन्नो' से 'कथक क्वीन' का खिताब हासिल करने वालीं विख्यात नृत्यांगना सितारा देवी की 97वीं जयंती के मौके पर सर्च इंजन गूगल ने ''डूडल'' बनाकर उन्हें सम्मानित किया।
- सितारा देवी का मूल नाम धनलक्ष्मी था और घर में उन्हें धन्नो कहकर पुकारा जाता था, इसकी वजह यह थी कि उनका जन्म धनतेरस के दिन पैदा होने की वजह से माता-पिता ने उनका नाम धनलक्ष्मी रखा और प्यार से उन्हें धन्नो कहते थे।
- बताया जाता है कि जन्म से सितारा देवी का मुंह टेढ़ा था और बेटी का टेढ़ा मुंह देखकर उनके माता-पिता डर गए, सिर्फ आठ साल की उम्र में सितारा देवी का विवाह कर दिया गया। मगर स्कूल जाने की जिद के चलते यह टूट गया। विवाह टूटने के बाद उन्होंने पढ़ाई की और नृत्य भी सीखा।
- पहली शादी उन्होंने फिल्म मुगले आजम के निर्देशक आसिफ से की लेकिन यह रिश्ता कम समय में ही टूट गया और उन्होंने तलाक ले लिया।
- दूसरी शादी उन्होंने ‘डॉन’ फिल्म के निर्माता कमल बरोट के भाई प्रताप बरोट से की। प्रताप के साथ मुंबई के नेपेंसी रोड इलाके में घर बसाने के बाद उन्होंने एक पुत्र रंजीत बरोट को जन्म दिया। बहू माया और पोती मल्लिका बरोट भी उनके साथ ही रहते थे।
- उनकी बहनों में सबसे बड़ी अलकनंदा और उनके बाद तारा देवी भी उस दौर की मशहूर नृत्यांगनाओं में शुमार थीं। उनके दोनों भाई दुर्गा प्रसाद मिश्र और चतुर्भुज मिश्र भी नृत्य साधना से जुड़े रहे।
- मशहूर कथक नृत्यांगना सितारा देवी का 25 नवंबर, 2014 को मुंबई के जसलोक अस्पताल में निधन हो गया। उनके निधन से संगीत जगत में शोक की लहर फैल गई।
- सितारा देवी ने 10 साल की उम्र से अकेले प्रस्तुति देना शुरू कर दिया था।
- मुंबई में उन्होंने जहांगीर हाल में अपना पहला सार्वजनिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया और उसके बाद कथक को लोकप्रिय बनाने की दिशा में वह आगे बढ़ती चली गईं और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। इस कार्यक्रम में नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर, स्वतंत्रता सेनानी सरोजिनी नायडू और पारसी परोपकारी सर कोवासजी जहांगीर शामिल थे।
- सितारा देवी के शिष्य विशाल कृष्ण ने बताया कि 16 साल की उम्र में कोलकाता के शांति निकेतन में एक संगीत प्रस्तुति के दौरान उनके नृत्य से प्रभावित होकर गुरु रवींद्रनाथ टैगोर ने उन्हें ‘कथक क्वीन’ की उपाधि दी थी।
- मात्र 16 वर्ष की आयु में सितारा देवी के प्रदर्शन को देखकर भावविभोर हुए गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर ने उन्हें ''नृत्य सम्राज्ञी'' की उपाधि दी थी।
- चाइल्ड आर्टिस्ट के तौर पर मुंबई पहुंची सितारा देवी ने ‘औरत का दिल’ फिल्म से डेब्यू किया था।
- 1935 में फिल्म ‘वसंत सेना’ से अपने करियर की शुरुआत करने वाली इस नृत्यांगना ने दर्जन भर से अधिक फिल्मों में अपने अभिनय से सिने दर्शकों के बीच लोकप्रियता अर्जित की।
- सितारा देवी ने निरंजन की पहली फिल्म ‘वसंत सेना’ में नृत्यांगना के तौर पर अभिनय की शुरुआत की।
- कथक को बॉलीवुड में किया मशहूर 60 दशक से भी ज्यादा समय तक एक प्रतिष्ठित नृत्यांगना रहीं सितारा देवी ही इस विधा को बॉलीवुड में लेकर आईं। उन्होंने मदर इंडिया, वतन, वतन समेत कई फिल्मों में काम किया।
- सितारा देवी ने शंभु महाराज और पंडित बिरजू महाराज के पिता अच्छन महाराज से भी नृत्य की शिक्षा ग्रहण की।
- बनारस घराने से कथक की महारत हासिल कर उन्होंने इस डांस स्टाइल को विश्व पटल तक पहुंचाया।
- कथक नृत्य में उनकी मयूर की गत, थाली की गत, जटायु मोक्ष, गत निकास की प्रस्तुति बेमिसाल थी।
- सितारा देवी के कथक में बनारस और लखनऊ घराने के तत्वों का सम्मिश्रण दिखाई देता है।
- यह भी उल्लेखनीय है कि सितारा देवी न सिर्फ कथक बल्कि भारतनाट्यम सहित कई भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैलियों और लोकनृत्यों में पारंगत थीं।
- मुंबई में एक कार्यक्रम के दौरान लगातार 11:30 घंटे तक डांस करने का रिकॉर्ड भी बनाया था।
- सितारा देवी को 1969 में संगीत नाटक अकादमी सम्मान मिला।
- विशेष योगदान के लिए 'पद्मश्री' (1975) और 'कालिदास सम्मान' (1994) से भी पुरस्कृत किया गया।
- भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण (2003) दिया गया जिसे इन्होंने लेने से मना कर दिया।
- सितारा देवी ने लंदन के रॉयल अल्बर्ट हॉल (1967) और न्यूयॉर्क के कार्नेगी हॉल (1976) जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर कथक प्रस्तुति दी।
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