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बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम की 84वीं जयंती
बहुजन नायक और बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक मान्यवर कांशीराम का जन्म 15, मार्च 1934 को पंजाब के रोपड़ जिले के खवासपुर गाँव में एक रैदासी सिख परिवार (दलित) में हुआ था।
जय भीम। जय भारत। जय कांशी राम। |
बहुजन नायक और बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक मान्यवर कांशीराम का जन्म 15, मार्च 1934 को पंजाब के रोपड़ जिले के खवासपुर गाँव में एक रैदासी सिख परिवार (दलित) में हुआ था।
- कांशी राम के दो भाई और चार बहने थीं। कांशी राम सभी भाई-बहनों में सबसे बड़े और सबसे अधिक शिक्षित भी। उन्होंने बीएससी की पढाई की थी।
- 1958 में स्नातक होने के बाद कांशी राम पूना में रक्षा उत्पादन विभाग में सहायक वैज्ञानिक के पद पर नियुक्त हुए।
- सन 1973 में कांशी राम ने अपने सहकर्मियो के साथ मिल कर BAMCEF (बेकवार्ड एंड माइनॉरिटी कम्युनिटीस एम्प्लोई फेडरेशन) की स्थापना की जिसका पहला क्रियाशील कार्यालय सन 1976 में दिल्ली में शुरू किया गया।
- इस संस्था का आदर्श वाक्य था ''एड्यूकेट ओर्गनाइज एंड ऐजिटेट ।'' इस संस्था ने अम्बेडकर के विचार और उनकी मान्यता को लोगों तक पहुचाने का बुनियादी कार्य किय।
- साल 1980 में उन्होंने ‘अम्बेडकर मेला’ नाम से पद यात्रा शुरू की.।इस यात्रा में बाबा साहेब अम्बेडकर के जीवन और उनके विचारों को चित्रों और कहानी के माध्यम से दर्शाया गया।
- 1984 में कांशी राम ने BAMCEF के समानांतर दलित शोषित समाज संघर्ष समिति (DSSSS) की स्थापना की। हालांकि यह संस्था पंजीकृत नहीं थी लेकिन यह एक राजनैतिक संगठन था।
- 14 अप्रैल, 1984 में कांशी राम ने बहुजन समाज पार्टी (Bahujan Samaj Party) के नाम से राजनैतिक दल का गठन किया।
- कांशी राम ने अपना पूरा जीवन शोषित समाज के पिछड़े लोगों की उन्नति और उन्हें एक मजबूत और संगठित आवाज़ देने के लिए समर्पित कर दिया। वे आजीवन अविवाहित रहे और अपना सारा जीवन पिछड़े लोगों लड़ाई और उन्हें मजबूत बनाने में समर्पित कर दिया।
- कांशीराम को उनके मानने वाले मान्यवर और साहेब के नाम से भी पुकारते हैं।
- ऐसा कहा जाता है कि एक बार कांशीराम ने बीजेपी के वरिष्ठ नेता अटल बिहारी वाजपेयी के द्वारा राष्ट्रपति बनाने के उनके प्रस्ताव को सामाजिक कारणों से ठुकरा दिया था। उस दौरा कांशीराम ने कहा था कि आप मुझे अगर पीएम बनवा सकते हैं तो बना दिजिए, राष्ट्रपति पद मुझे स्वीकार नहीं है।
- कांशी राम को मधुमेह और उच्च रक्तचाप की समस्या थी। 1994 में उन्हें दिल का दौरा भी पड़ चुका था। दिमाग की नस में खून का गट्ठा जमने से 2003 में उन्हें दिमाग का दौरा पड़ा। 2004 के बाद ख़राब सेहत के चलते उन्होंने सार्वजनिक जीवन छोड़ दिया। करीब 2 साल तक शय्याग्रस्त रहेने के बाद 9 अक्टूबर 2006 को दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई। उनकी आखिरी इच्छा के मुताबिक उनका अंतिम संस्कार बौद्ध रीति-रिवाजो से किया गया।
- कांशीराम की जीवनी कांशीराम ''द लीडर ऑफ़ दलित्स'' लिखने वाले बद्री नारायण बताते हैं, "कांशीराम ने मायावती से पहला सवाल पूछा कि वो क्या करना चाहती हैं। मायावती ने कहा कि वो आईएएस बनना चाहती हैं ताकि अपने समुदाय के लोगों की सेवा कर सकें।
- मायावती की जीवनी लिखने वाले अजय बोस अपनी किताब ''बहनजी'' में लिखते हैं, "मायावती ने स्कूल अध्यापिका के तौर पर मिलने वाले वेतन के पैसों को उठाया जिन्हें उन्होंने जोड़ रखा था, एक सूटकेस में कुछ कपड़े भरे और उस घर से बाहर आ गईं जहां वो बड़ी हुई थीं।"
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