शब्द संसार: बजट 2017- 2018 के तहत वित्तीय बिल लोकसभा में पास, इस बिल से आयेंगे बड़े बदलाव
शब्द संसार : बजट 2017- 2018 के तहत वित्तीय बिल लोकसभा में पास, इस बिल से आयेंगे बड़े बदलाव |
बजट 2017-18 के तहत बुधवार(22 मार्च 2017)को लोकसभा में वित्तिय बिल पास कर दिया हैं। इसके पास होने से कई बड़े बदलाव होंगे | सबसे बड़ा बदलाव केंद्र सरकार ने वस्तुओं ओर सेवाओं की खरीद के दौरान दो लाख रुपये से अधिक के नकद भुगतान पर लगने वाले टैक्स को खत्म कर दिया है। 1 अप्रैल से 2 लाख से ऊपर के नकद ट्रांजेक्शन पर रोक लगाने के बाद यह फैसला किया गया है।
इस वित्तिय बिल के बाद 1 अप्रैल 2017 से आएंगे ये बड़े बदलाव होंगे.......
#:- 2.5 लाख से 10 लाख के बीच इनकम वालों का टैक्स प्रतिशत 10 से 5 फीसदी कर दिया जाएगा।
#:- सरकार ने उन संपत्तिधारकों के लिए कर लाभ कम कर दिए हैं, जो उधारकर्ता बन कर किराए का फायदा उठाते हैं।
#:- 5 लाख तक की बिजनेस इनकम कमाने वालों के लिए आईटीआर भरते समय एक ही फॉर्म उपलब्ध किया जाएगा।
#:- इनकम टैक्स ऑफिसर पिछले 10 सालों के उन मामलों को दोबारा खोल सकते हैं, जिनकी आय और पूंजी 50 लाख से ज्यादा है।
#:- राजीव गांधी इक्यूटी सेविंग स्कीम में इन्वेस्ट करने वालों को कोई छूट नहीं दी जाएगी।
#:- प्रॉपर्टी से पैसा कमाने वालों के लिए भी इस बिल में बड़ा बदलाव आया है। दीर्घकालिक लाभ के रूप में संपत्ति को रखने की अवधि कम हो जाएगी। इसे तीन साल से दो साल कर दिया जाएगा।
#:- 50,000 से अधिक का किराया पाने वालों को 5 फीसदी अतिरिक्त टीडीएस देना होगा।
#:- पेशनधारकों के लिए निर्देश आए कि, अलग से की जाने वाली निकासी का नेशनल पेंशन सिस्टम से कोई लेना देना नहीं होगा।
#:- जिन लोगों की आय 50 लाख से 1 करोड़ है, उनपर 10 फीसदी सरचार्ज लगेगा।
#:- आखिरी बदलाव ये की पैन पाने के लिए भी अब आधार कार्ड का होना अनिवार्य होगा। साथ ही जुलाई से टैक्स रिटर्न भरते वक्त आधार का होना जरूरी होगा|
बजट 2017-18 का कुछ महत्वपुर्ण टर्म :-
वित्त मंत्री अरुण जेटली 1 फरवरी 2017 को आम बजट 2017-18 पेश किया था | पारंपरिक तौर पर बजट को फरवरी के अंत में पेश किया जाता था और यह मई तक पास हो पाता था |
हालांकि, इस साल बजट को जल्दी पेश किया जा रहा है ताकि इसे वित्त वर्ष का अंत (31 मार्च को) होने तक इसे पास किया जा सके, इससे मंत्रालयों को पैसे जारी करने का काम भी जल्दी होगा और मंत्रालय अप्रैल से अपने खर्च शुरू कर पाएंगे|
प्रश्न :- आम बजट क्या होता है?
उत्तर:- संविधान में ‘बजट’ शब्द का जिक्र नहीं है, जिसे बोलचाल की भाषा में आम बजट कहा जाता है उसे संविधान के आर्टिकल 112 में एनुअल फाइनेंशियल स्टेटमेंट कहा गया है| फाइनेंशियल स्टेटमेंट अनुमानित प्राप्तियों और खर्चों का उस साल के लिए सरकार का विस्तृत ब्योरा होता है|
#:- इस साल रेल बजट को भी आम बजट में मिला दिया गया है - इसका क्या मतलब है?
-1924 से ही संसद में एक अलग रेल बजट पेश किया जाता है, इस बार रेल बजट को आम बजट के साथ मिला दिया गया है|
-हालांकि, जैसा वित्त मंत्री ने जिक्र किया, रेलवे की स्वायत्तता बरकरार रहेगी और रेलवे अपने वित्तीय फैसले खुद ही लेगी|
-रेलवे इस इनवेस्टमेंट के बदले एक रिटर्न सरकार को देती है, जिसे डिविडेंड (लाभांश) कहा जाता है| इस साल से, रेलवे को इस तरह के डिविडेंड को सरकार को नहीं चुकाना होगा|
#:- योजनागत और गैर-योजनागत खर्चों का वर्गीकरण इस बार क्यों नहीं है?
-बजट भाषण में वित्त मंत्री ने पिछले साल प्लान और नॉन-प्लान एक्सपेंडिचर को एकसाथ मिलाने का ऐलान किया था|
-रेलवे मंत्रालय को केंद्र सरकार से ग्रॉस बजटरी सपोर्ट मिलता रहा है, योजना आयोग पंचवर्षीय योजनाओं के टारगेट्स के लिहाज से योजनागत खर्चों के लिए आवंटन करता था| -दूसरी ओर, वित्त मंत्रालय गैर-योजनागत खर्चों के लिए आवंटन करता है, अंतिम पंचवर्षीय योजना (12वीं पंचवर्षीय योजना) के इस साल खत्म होने के साथ, यह वर्गीकरण अब अप्रासंगिक हो गया है|
-खर्चों को अब केवल कैपिटल और रेवेन्यू मदों में वर्गीकृत किया जाएगा|
#:- कुछ ऐसे बिंदु, जो आपको बजट दस्तावेज में देखने को मिलेंगे ----
- कैपिटल एक्सपेंडिचर (पूंजीगत खर्च):- यह फंड्स का आउटफ्लो (खर्च) है, इससे संपत्तियां (एसेट्स) खड़ी होती हैं या कर्ज के बोझ कम होते हैं| मिसाल के तौर पर, सड़कों का निर्माण या लोन चुकाने को कैपिटल एक्सपेंडिचर में डाला जाता है|
- रेवेन्यू एक्सपेंडिचर (राजस्व खर्च):- कैपिटल एक्सपेंडिचर में वर्गीकृत किए गए खर्चों को छोड़कर सभी खर्च रेवेन्यू एक्सपेंडिचर में आते हैं, इससे एसेट्स या लाइबिलिटीज (दायित्वों) में कोई फर्क नहीं पड़ता है| तनख्वाह, ब्याज भुगतान और अन्य प्रशासनिक खर्चे रेवेन्यू एक्सपेंडिचर में आते हैं| रेवेन्यू और कैपिटल एक्सपेंडिचर वर्गीकरण सरकारी प्राप्तियों (रिसीट्स) पर भी लागू होते हैं|
- रेवेन्यू रिसीट्स:- ये आमतौर पर करों, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों से मिलने वाले डिविडेंड्स और सरकार द्वारा दिए गए कर्जों से मिलने वाले ब्याज से आते हैं|
- कैपिटल रिसीट्स:- ये आमतौर पर सरकार की अलग-अलग जरियों से ली गई उधारियों से आते हैं| इसके अलावा राज्य सरकारों के केंद्र से लिए गए कर्जों पर किए गए भुगतान भी इसमें आते हैं| सरकारी कंपनियों के विनिवेश से मिलने वाली रकम भी इसी कैटेगरी में आती है|
- फिस्कल डेफिसिट (राजस्व घाटा):- कुल सरकारी खर्चों का कुल सरकारी प्राप्तियों से ज्यादा होना राजस्व घाटा कहलाता है|
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