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हरियाणा प्रदेश पौराणिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से राष्ट्रीय स्तर पर बेहद गौरवमयी एवं उल्लेखनीय स्थान रखता है पानीपत का तीसरी और अंतिम ऐतिहासिक लड़ाई 14 जनवरी, 1761 ई. को अफगान कबाइली योद्धा अहमद शाह अब्दाली (जिसे दुर्रानी भी कहा जाता था) और मुग़ल बादशाह शाहआलम द्वितीय के संरक्षक और सहायक मराठों के बीच लड़ा गया था। इस युद्ध में मराठा सेना का प्रतिनिधित्व सदाशिवराव भाऊ ने किया, जबकि विश्वासराव नाममात्र का सेनापति था। पानीपत का तीसरा युद्ध इस तरह सम्मिलित इस्लामिक सेना और मराठाओं के बीच लड़ा गया।
हरियाणा प्रदेश पौराणिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से राष्ट्रीय स्तर पर बेहद गौरवमयी एवं उल्लेखनीय स्थान रखता है पानीपत का तीसरी और अंतिम ऐतिहासिक लड़ाई 14 जनवरी, 1761 ई. को अफगान कबाइली योद्धा अहमद शाह अब्दाली (जिसे दुर्रानी भी कहा जाता था) और मुग़ल बादशाह शाहआलम द्वितीय के संरक्षक और सहायक मराठों के बीच लड़ा गया था। इस युद्ध में मराठा सेना का प्रतिनिधित्व सदाशिवराव भाऊ ने किया, जबकि विश्वासराव नाममात्र का सेनापति था। पानीपत का तीसरा युद्ध इस तरह सम्मिलित इस्लामिक सेना और मराठाओं के बीच लड़ा गया।
- पेशवा के वारिसों (सदाशिव भाऊ, पेशवा बाजीराव-प्रथम के भतीजे और विश्वास, पेशवा बाजीराव-प्रथम और काशीबाई के पोते) की बहादुरी को अफगानों द्वारा भी स्वीकार किया गया था।
- यूरोपीय तकनीक पर आधारित मराठों की पैदल सेना एवं तोपखाने की टुकड़ी की कमान इब्राहिम ख़ाँ गार्दी के हाथों में थी। बहादुर मराठा जनरल इब्राहिम खां गार्दी, जिन्होंने 10,000 सैनिकों और तोपखाने का नेतृत्व किया।
- पानीपत का तृतीय युद्ध मुख्यतः दो कारणों का परिणाम था - पहला, नादिरशाह की तरह अहमद शाह अब्दाली भी भारत को लूटना चाहता था, दूसरे, मराठे 'हिन्दूपद पादशाही' की भावना से ओत-प्रोत होकर दिल्ली को अपने अधिकार में लेना चाहते थे।
- 10 जनवरी 1760 को अहमद शाह अब्दाली ने मराठा सेनापति दत्ताजी की हत्या कर दिल्ली पर कब्जा कर लिया।
- मशहूर मराठी किताब 'पानीपत' के लेखक "विश्वास पाटिल" ने एक टीवी इंटरव्यू में कहा था कि चूंकि युद्ध का वह समय दक्षिणायन का समय था, इसलिए सूर्य की किरणें सीधे भूख से बेहाल मराठा सैनिकों और उनके घोड़ों की आंखों पर पड़ रही थीं।
- दक्षिणायन मकर संक्रांति पर होने वाली एक खगोलीय घटना है, जिसमें सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है।
- इतिहासकार 'जे.एन. सरकार' ने सच ही लिखा है कि - 'महाराष्ट्र में सम्भवतः ही कोई ऐसा परिवार होगा, जिसने कोई न कोई सगा सम्बन्धी न खोया हो, तथा कुछ परिवारों का तो विनाश ही हो गया।'
- पत्र में लिखा था , ‘‘दो मोती नष्ट हो गए और 22 स्वर्ण मोहरें खो दी गई और चांदी-तांबे की तो गणना ही नहीं।’’
- पानीपत के युद्ध के सदमें को न सह पाने के कारण बालाजी बाजीराव की कुछ दिन बाद मृत्यु हो गई।
नोट- नजीबुद्दौला (नजीब खान) भारतीय था, जो आक्रमणकारी अफगान सेना में शामिल हो गया था। वह बिजनौर जिले के नजीबाबाद शहर का संस्थापक था। नजीब पहले मुगल सेना में सैनिक के रूप में सेवा कर चुका था, लेकिन बाद में अहमद शाह अब्दाली से जाकर मिल गया।
पानीपत के इस युद्ध में मराठों की पराजय के महत्त्वपूर्ण कारण इस प्रकार थे-
- अहमदशाह अब्दाली की सेना, सदाशिवराव भाऊ की सेना से अधिक थी।
- मल्हारराव होल्कर युद्ध के बीच में ही भाग निकला और मराठा फ़ौज पूरी तरह से उखड़ गयी।
- उत्तर भारत की सभी मुसलमान शक्तियाँ अब्दाली के साथ थीं।
- इस युद्ध के पूर्व में मराठों ने राजपूत, जाट तथा सिक्खों को हर प्रकार से लूटा तथा बर्बाद किया था। इसीलिए इन लोगों ने मराठों का साथ नहीं दिया।
- मराठा सरदारों के आपसी मतभेद भी काफ़ी हद तक बढ़ चुके थे।
- मराठों के सैनिक शिविर में अकाल की स्थिति थी। सैनिकों के लिए पर्याप्त रसद का इंतजाम नहीं था।
- सैनिक संगठन की दृष्टि से अब्दाली पूरी तरह से श्रेष्ठ संगठनकर्ता था।
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