ओशो रजनीश (Osho Rajneesh) - 20वीं सदी के महान विचारक और विवादित संन्यासी की जीवनकथा

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आपका विवाह राजनितिक शासन करने का छोटा रूप है, जिसमे आपके माता और पिता छोटे राजनेता होते है। - ओशो के सुविचार

20वीं सदी के महान विचारक तथा आध्यात्मिक गुरु ओशो रजनीश (Osho Rajneesh, बचपन का नाम- चन्द्र मोहन जैन) का जन्म 11 दिसंबर, 1931 को मध्य प्रदेश के रायसेन शहर के कुच्वाडा गांव में हुआ था।
  • ओशो रजनीश के माता पिता श्री बाबूलाल और सरस्वती जैन, जोकि एक तारणपंथी दिगंबर जैन थे। 
  • ओशो रजनीश ने अपनी किताब 'ग्लिप्सेंस ऑफ माई गोल्डन चाइल्डहुड' में लिखा है।
  • वे दर्शनशास्त्र के अध्यापक थे। उनके द्वारा समाजवाद, महात्मा गाँधी की विचारधारा तथा संस्थागत धर्म पर की गई अलोचनाओं ने उन्हें विवादास्पद बना दिया।
  • ओशो रजनीश ने जबलपुर विश्वविद्यालय से स्नातक (1953) और फिर सागर विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर (1957) की उपाधि ग्रहण करने के बीच रजनीश ने तारनपंथी जैन समुदाय द्वारा आयोजित अपने पहले सालाना सर्व धर्म सम्मेलन का हिस्सा बने। यहीं उन्होंने सबसे पहले सार्वजनिक भाषण दिया, जहां से उनके सार्वजनिक भाषणों का सिलसिला शुरू हुआ जो वर्ष 1951 से 1968 तक चला। 
  • नौकरी छोड़ने के बाद उन्होंने नवसंन्यास आंदोलन की शुरुआत की। इसके बाद ही उन्होंने खुद को ओशो कहना शुरू कर दिया।
  • 1960 के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी और हिंदू धार्मिक रूढ़िवादी के प्रखर आलोचक रहे। उन्होंने मानव कामुकता के प्रति एक ज्यादा खुले रवैया की वकालत की, जिसके कारण वे भारतीय और अंतरराष्ट्रीय प्रेस में "सेक्स गुरू" के रूप में कुख्यात हुए।
  • साल 1981 से 1985 के बीच वह अमरीकी प्रांत ओरेगॉन में उन्होंने आश्रम की स्थापना की, ये आश्रम 65 हज़ार एकड़ में फैला था।
  • ओरेगॉन में ओशो के शिष्यों ने उनके आश्रम को रजनीशपुरम नाम से एक शहर के तौर पर रजिस्टर्ड कराना चाहा लेकिन स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया।
  • भारत लौटने के बाद वे पुणे के कोरेगांव पार्क इलाके में स्थित अपने आश्रम में लौट आए। उनकी मृत्यु 19 जनवरी, 1990 में हो गई। उनकी मौत के बाद पुणे आश्रम का नियंत्रण ओशो के क़रीबी शिष्यों ने अपने हाथ में ले लिया।
  • ओशो की मौत पर 'हू किल्ड ओशो' टाइटल से क़िताब लिखने वाले 'अभय वैद्य' कहते हैं कि, "19 जनवरी, 1990 को ओशो आश्रम से डॉक्टर गोकुल गोकाणी को फोन आया। उनको कहा गया कि आपका लेटर हेड और इमरजेंसी किट लेकर आएं।"  डॉक्टर गोकुल गोकाणी ने अपने हलफनामे में लिखा है, "वहां मैं करीब दो बजे पहुंचा, उनके शिष्यों ने बताया कि ओशो देह त्याग कर रहे हैं। आप उन्हें बचा लीजिए, लेकिन मुझे उनके पास जाने नहीं दिया गया। कई घंटों तक आश्रम में टहलते रहने के बाद मुझे उनकी मौत की जानकारी दी गई और कहा गया कि डेथ सर्टिफिकेट जारी कर दें।"
  • ओशो के आश्रम में किसी संन्यासी की मृत्यु को उत्सव की तरह मनाने का रिवाज़ था, लेकिन जब खुद ओशो की मौत हुई तो इसकी घोषणा के एक घंटे के भीतर ही उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया और उनके निर्वाण का उत्सव भी संक्षिप्त रखा गया था। ओशो की मां भी उनके आश्रम में ही रहती थीं।
  • ओशो इंटरनेशनल ने यूरोप में ओशो नाम का ट्रेड मार्क ले रखा है।
  • पुणे स्थित उनकी समाधि पर लिखी इस बात से ओशो की अहमियत का अंदाजा लगाया जा सकता है, "न कभी जन्मे, न कभी मरे. वे धरती पर 11 दिसंबर, 1931 और 19 जनवरी 1990 के बीच आए थे।" 
नोट:- ओशो शब्द की मूल उत्पत्ति के सम्बन्ध में कई धारणायें हैं।
  1. 'ओशो' शब्द कवि विलयम जेम्स की कविता 'ओशनिक एक्सपीरियंस' के शब्द 'ओशनिक' से लिया गया है, जिसका अर्थ है 'सागर में विलीन हो जाना।
  2. रजनीश की कई कृतियाँ चर्चित रहीं हैं, इनमें 'सम्भोग से समाधि तक', 'मृत्यु है द्वार अमृत का', संम्भावनाओं की आहट', 'प्रेमदर्शन' के नाम प्रमुख हैं। 
  3. ओशो की एक किताब है:- 'अस्वीकृति में उठा हाथ'। यह किताब पूर्णत: गांधी पर केंद्रित है।
  4. समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़, कवि और कलाकार राशीद मैक्सवेल की किताब 'द ओनली लाइफ : ओशो, लक्ष्मी एंड द वर्ल्ड इन क्राइसेस' में दावा किया गया है कि इंदिरा गांधी ओशो से प्रभावित थीं और उन्होंने अपने बेटे राजीव गांधी को राजनीति में लाने के लिए ओशो की सचिव लक्ष्मी की मदद ली थी।

स्रोत: www.bbc.com, www.neosannyas.org, www.oshodhara.org.in

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