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स्वर्ण मंदिर को हरमंदिर साहिब या दरबार साहिब भी कहा जाता है। इसके आस पास के सुंदर परिवेश और स्वर्ण की पर्त के कारण ही इसे स्वर्ण मंदिर कहते हैं। यह अमृतसर में स्थित सिक्खों का सबसे पवित्र मंदिर माना जाता है।
स्वर्ण मंदिर को हरमंदिर साहिब या दरबार साहिब भी कहा जाता है। इसके आस पास के सुंदर परिवेश और स्वर्ण की पर्त के कारण ही इसे स्वर्ण मंदिर कहते हैं। यह अमृतसर में स्थित सिक्खों का सबसे पवित्र मंदिर माना जाता है।
- स्वर्ण मंदिर की वास्तु कला हिन्दू तथा मुस्लिम निर्माण कार्य के बीच एक अनोखे सौहार्द को प्रदर्शित करती है।
- इस वास्तुकला से भारत के कला इतिहास में सिक्ख संप्रदाय की एक स्वतंत्र वास्तुकला का सृजन हुआ है।
स्वर्ण मंदिर का इतिहास (History of Golden Temple)..........
- इतिहास के मुताबिक, सन 1589 ने पांचवें सिक्ख गुरु अर्जुन देव के शिष्य सूफी संत शेखमियां मीर ने सरोवर के बीच में स्थित वर्तमान स्वर्ण-मन्दिर की नींव डाली।
- मन्दिर के चारों ओर चार दरवाज़ों का प्रबन्ध किया गया था। यह गुरु नानक के उदार धार्मिक विचारों का प्रतीक समझा गया।
- गोल्डन टेम्पल के निर्माण के लिए जमीन मुस्लिम शासक अकबर ने दान की थी।
- स्वर्ण मंदिर का निर्माण कार्य सितंबर 1604 में पूरा हुआ। गुरु अर्जन साहिब ने नव सृजित गुरु ग्रंथ साहिब (सिक्ख धर्म की पवित्र पुस्तक) की स्थापना श्री हरमंदिर साहिब ने की तथा बाबा बुद्ध जी को गुरु ग्रंथ साहिब का प्रथम वाचक नियुक्त किया।
- 1757 ई. में वीर सरदार बाबा दीपसिंह जी ने मुसलमानों के अधिकार से इस मन्दिर को छुड़ाया, किन्तु वे उनके साथ लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
- पंजाब-केसरी महाराज रणजीत सिंह ने स्वर्ण-मन्दिर को एक बहुमूल्य पटमण्डप दान में दिया था, जो संग्रहालय में है।
- स्वर्ण मंदिर को दोबारा 17सदी में महाराज सरदार जस्सा सिंह अहलुवालिया द्वारा बनाया गया था।
- अकाल तख्त का निर्माण सन 1606 में किया गया था।
- अफगा़न हमलावरों ने 19 वीं शताब्दी में इसे पूरी तरह नष्ट कर दिया था। तब महाराजा रणजीत सिंह ने इसे दोबारा बनवाया था और इसे सोने की परत से सजाया था।
- मन्दिर में गुरु-ग्रंथ-साहिब, जिसका संग्रह गुरु अर्जुन देव ने किया था, स्थापना की गई थी।
- स्वर्ण मंदिर को हरमंदिर साहिब या दरबार साहिब भी कहा जाता है। इसके आस पास के सुंदर परिवेश और स्वर्ण की पर्त के कारण ही इसे स्वर्ण मंदिर कहते हैं।
- अमृतसर का नाम, अमृत सरोवर और अमृत झील के नाम पर रखा गया है जिसका निर्माण गुरु रामदास ने किया था।
- अत: सरोवर पर निर्माण कार्य के साथ कस्बों का निर्माण भी इसी के साथ 1570 ई. में शुरू हुआ। दोनों परियोजनाओं का कार्य 1577 ई. में पूरा हुआ था।
निर्माण एवं वास्तुकला (Construction and Architecture)...
- हरमंदिर साहिब की स्थापना सिख धर्म के पांचवें गुरु अर्जुन देव जी ने की थी
- स्वर्ण मंदिर का निर्माण कार्य सितंबर 1604 में पूरा हुआ।
- महाराजा रणजीत सिंह, 19वी सदी में पंजाब के राजा थे और उनके कार्यकाल में ही स्वर्ण मंदिर का नवीनीकरण हुआ था।
- मंदिर से 100 मी. की दूरी पर स्वर्ण जड़ित, अकाल तख्त है। इसमें एक भूमिगत तल है और पांच अन्य तल हैं। इसमें एक संग्रहालय और सभागार है। यहाँ पर सरबत खालसा की बैठकें होती हैं। सिक्ख पंथ से जुड़ी हर मसले या समस्या का समाधान इसी सभागार में किया जाता है।
- स्वर्ण-मन्दिर के निकट बाबा अटलराय का गुरुद्वारा है। ये छठे गुरु हरगोविन्द के पुत्र थे, और नौ वर्ष की आयु में ही सन्त समझे जाने लगे थे।
- स्वर्ण मंदिर, अमृतसर इस कार्यक्रम के बाद 'अथ सत तीरथ' का दर्जा देकर यह सिक्ख धर्म का एक अपना तीर्थ बन गया।
- उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम चारों दिशाओं में इसके दरवाज़े हैं।
- "हर की पौड़ी" के प्रथम तल पर गुरु ग्रंथ साहिब की सूक्तियां पढ़ी जा सकती हैं।
धार्मिक महत्त्व (Religious importance)...
- सिख धर्म का सबसे पवित्र ग्रन्थ “गुरु ग्रंथ” साहिब सबसे पहले हरमंदिर साहिब में ही स्थापित किया गया था
- हरमंदिर साहिब के पहले पुजारी बाबा बुड्ढा जी थे
- स्वर्ण मंदिर की वास्तु कला हिन्दू तथा मुस्लिम निर्माण कार्य के बीच एक अनोखे सौहार्द को प्रदर्शित करती है तथा स्वर्ण मंदिर को विश्वास के सर्वोत्तम वास्तु-कलात्मक नमूने के रूप में माना जा सकता है।
- यह वास्तुकला से भारत के कला इतिहास में सिक्ख संप्रदाय की एक स्वतंत्र वास्तुकला का सृजन हुआ है।
- स्वर्ण मंदिर कलात्मक सौंदर्य और गहरी शांति का उल्लेखनीय संयोजन है।
- विश्राम-स्थलों के साथ-साथ यहां चौबीस घंटे लंगर चलता है, जिसमें कोई भी प्रसाद ग्रहण कर सकता है।
- इनमें से एक बेरी वृक्ष को भी एक तीर्थस्थल माना जाता है। इसे बेर बाबा बुड्ढा के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि जब स्वर्ण मंदिर बनाया जा रहा था तब बाबा बुड्ढा जी इसी वृक्ष के नीचे बैठे थे और मंदिर के निर्माण कार्य पर नजर रखे हुए थे।
- इस सराय का निर्माण सन 1784 में किया गया था। यहां 228 कमरे और 18 बड़े हॉल हैं। यहाँ पर रात गुजारने के लिए गद्दे व चादरें मिल जाती हैं।
- सिखों का मुख्य उत्सव बैसाखी, गुरु राम दास का जन्मदिन, गुरू तेग़ बहादुर का मृत्युदिन, गुरु नानक देव जी का जन्मदिन इत्यादि शामिल हैं।
- स्वर्ण मंदिर को दुनिया के सबसे बड़े सामुदायिक रसोईघर के रूप में जाना जाता है, जहां 50,000 से अधिक श्रद्धालुओं को सामान्य दिनों में तथा 1,00,000 से अधिक श्रद्धालुओं को सप्ताहांत और त्योहारों के मौकों पर ताजा खाना खिलाया जाता है।
- सिख धर्म की लघु-संसद शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश के कई गुरुद्वारों में सामुदायिक रसोईघर चलाती है, जिसमें अमृतसर का हरमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) भी शामिल है।
- 'लंगर सेवा' (सामुदायिक रसोईघर) एक सामाजिक-धार्मिक गतिविधि है, जो पहले सिख गुरु नानक देव (1469-1539) के समय से ही सिख धर्म के लोकाचार का हिस्सा है।
- खबरों के मुताबिक जीएसटी लागू होने के बाद स्वर्ण मंदिर के लंगर के बजट पर और 10 करोड़ रुपये का बोझ पड़ने जा रहा है।
- एक दिन में खाना बनाने के लिए लगभग 7,000 किलोग्राम आटा, 1,200 किलोग्राम चावल, 1,300 किलोग्राम दाल और 500 किलोग्राम घी का इस्तेमाल किया जाता है।
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