सनातन धर्म (Sanatan Dharma) के सोलह संस्कार
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दुनिया के सबसे प्रचीन धर्मों में से एक सनातन धर्म की विशालता से सभी अवगत हैं। बौद्ध, जैन, ईसाई, इस्लाम आदि धर्मों को उनके गुरूओं द्वारा स्थापित किया गया और फिर अनुयायियों ने उसका प्रचार किया हैं। सनातन धर्म में व्यक्ति के जीवन को चार आश्रमों में बांटा गया है। इन आश्रमों में रहते हुए मनुष्य को 16 प्रकार के संस्कारों का पालन करना अनिवार्य माना गया है।
(1). गर्भाधान संस्कार (Garbhaadhan Sanskar)– योग्य, गुणवान और आदर्श संतान प्राप्त करने के लिए मनुष्य जीवन का यह पहला संस्कार है। शास्त्रों में मनचाही संतान प्राप्त के लिए गर्भधारण संस्कार किया जाता है। इसी संस्कार से वंश वृद्धि होती है।
(2). पुंसवन संस्कार (Punsavana Sanskar)– गर्भस्थ शिशु के बौद्धिक और मानसिक विकास के लिए यह संस्कार किया जाता है। कहा जाता है कि गर्भवति स्त्री को रोजाना गीता और रामायण जैसे पवित्र ग्रंथों का ध्ययन रोजाना करना चाहिए। इससे शिशु का विचार तंत्र विकासित होता है।
(3). सीमन्तोन्नयन संस्कार (Simantonnayan Sanskar)– यह संस्कार गर्भ के छठवें या आठवें महीने में किया जाता है। इस समय गर्भ में पल रहा बच्चा सीखने के काबिल हो जाता है।
(4). जातकर्म संस्कार (Jaat-Karm Sansakar)– जन्म के बाद नवजात शिशु के नालच्छेदन (यानि नाल काटने) से पूर्व इस संस्कार को करने का विधान है। इसके अंतर्गत शिशु को शहद और घी चटाया जाता है साथ ही वैदिक मंत्रों का उच्चारण किया जाता है।
(5). नामकरण संस्कार (Naamkaran Sanskar)- शिशु के जन्म के बाद 11वें दिन नामकरण संस्कार किया जाता है।
(6). निष्क्रमण संस्कार (Nishkraman Sanskar)– निष्क्रमण का अर्थ है बाहर निकालना। शिशु का नाम रख लिए जाने के बाद भी उसे कुछ दिनों के लिए मां के पास ही रखा जाता है। निष्क्रमण् संस्कार के तहत पहली बार नवजात शिशु को सूर्य तथा चन्द्रमा की ज्योति दिखाने का विधान है। जन्म के चौथे महीने इस संस्कार को करने का विधान है।
(7). अन्नप्राशन संस्कार (Annaprashana Sanskar)– जन्म से छठे महीने में उसका अन्नप्राशन संस्कार होता है। जिसमें शिशु को चांदी की कटोरी या थाली में रखा भोजन परोसा जाता है।
(8). चूड़ाकर्म/मुंडन संस्कार (Mundan Sanskar)- आचार्यो ने बालक के पहले, तीसरे या पांचवें वर्ष में इस संस्कार को करने का विधान बताया है। मुंडन संस्कार का अभिप्राय है कि जन्म के समय उत्पन्न अपवित्र बालों को हटाकर बालक को प्रखर बनाना है।
(9). कर्णवेध या कर्ण-छेदन संस्कार (Karnavedh Sanskar)– वैज्ञानिक भाषा में इसे एक्यूपंक्चर कहा जाता है। जिसके अनुसार एक्यूपंक्चर से व्यक्ति का दिमाग शांत होता है और उसके दिल की गति सामान्य रहती है। इससे श्रवण शक्ति बढ़ती है और कई रोगों की रोकथाम हो जाती है।
(10). विद्या आरंभ संस्कार (Vidhya Arambha Sanskar)- प्रचीन काल में जब गुरुकुल की परम्परा थी तो बालक को वेदाध्ययन के लिये भेजने से पहले घर में अक्षर बोध कराया जाता था। शुभ मुहूर्त में ही विद्यारम्भ संस्कार शुरू होता है और इसके बाद बच्चा अपनी पढाई शुरू करता है।
(11). उपनयन या यज्ञोपवित संस्कार (Yagyopaveet Sanskar)– यज्ञोपवीत (संस्कृत संधि विच्छेद= यज्ञ+उपवीत) उप यानी पास और नयन यानी ले जाना, गुरू के पास ले जाने का अर्थ है-उपनयन संस्कार. इसमें बालक को जनेऊ पहना जाता है।
(13). केशांत संस्कार (Keshant Sanskar)– केशांत संस्कार अर्थ है केश यानी बालों का अंत करना। गुरुकुल में वेदाध्ययन पूर्ण कर लेने पर आचार्य के समक्ष यह संस्कार सम्पन्न किया जाता था।
(14). समावर्तन संस्कार (Samavartan Sanskar)- समावर्तन संस्कार अर्थ है फिर से लौटना। गुरुकुल से शिक्षा प्राप्ति के बाद व्यक्ति को फिर से समाज में लाने के लिए यह संस्कार किया जाता था।
(15). विवाह संस्कार (Vivah Sanskar)– यज्ञोपवीत से समावर्तन संस्कार तक ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने के बाद बालक को विवाह कर गृहस्थ जीवन की शुरूआत करने का अधिकार मिलता है। विवाह संस्कार सर्वाधिक महत्वपूर्ण संस्कार माना जाता है। इसके अंतर्गत वर और वधू दोनों साथ रहकर धर्म के पालन का संकल्प लेते हुए विवाह करते हैं। विवाह के द्वारा सृष्टि के विकास में योगदान दिया जाता है। इसी संस्कार से व्यक्ति पितृऋण से मुक्त होता है।
दुनिया के सबसे प्रचीन धर्मों में से एक सनातन धर्म की विशालता से सभी अवगत हैं। बौद्ध, जैन, ईसाई, इस्लाम आदि धर्मों को उनके गुरूओं द्वारा स्थापित किया गया और फिर अनुयायियों ने उसका प्रचार किया हैं। सनातन धर्म में व्यक्ति के जीवन को चार आश्रमों में बांटा गया है। इन आश्रमों में रहते हुए मनुष्य को 16 प्रकार के संस्कारों का पालन करना अनिवार्य माना गया है।
- जीवन के इन नियमों को बनाने का श्रेय महर्षि वेदव्यास को जाता है। महर्षि वेदव्यास ने 'संस्कार' शब्द को परिभाषित करते हुए बताया है कि संस्कार अपने भीतर कई गुणों को समाए हुए है।
- संस्कार किसी भी धर्म की वह चेतना है, जो उस धर्म के मानने वालों को जीने का सलीका सिखाती है।
(1). गर्भाधान संस्कार (Garbhaadhan Sanskar)– योग्य, गुणवान और आदर्श संतान प्राप्त करने के लिए मनुष्य जीवन का यह पहला संस्कार है। शास्त्रों में मनचाही संतान प्राप्त के लिए गर्भधारण संस्कार किया जाता है। इसी संस्कार से वंश वृद्धि होती है।
(2). पुंसवन संस्कार (Punsavana Sanskar)– गर्भस्थ शिशु के बौद्धिक और मानसिक विकास के लिए यह संस्कार किया जाता है। कहा जाता है कि गर्भवति स्त्री को रोजाना गीता और रामायण जैसे पवित्र ग्रंथों का ध्ययन रोजाना करना चाहिए। इससे शिशु का विचार तंत्र विकासित होता है।
(3). सीमन्तोन्नयन संस्कार (Simantonnayan Sanskar)– यह संस्कार गर्भ के छठवें या आठवें महीने में किया जाता है। इस समय गर्भ में पल रहा बच्चा सीखने के काबिल हो जाता है।
(4). जातकर्म संस्कार (Jaat-Karm Sansakar)– जन्म के बाद नवजात शिशु के नालच्छेदन (यानि नाल काटने) से पूर्व इस संस्कार को करने का विधान है। इसके अंतर्गत शिशु को शहद और घी चटाया जाता है साथ ही वैदिक मंत्रों का उच्चारण किया जाता है।
(5). नामकरण संस्कार (Naamkaran Sanskar)- शिशु के जन्म के बाद 11वें दिन नामकरण संस्कार किया जाता है।
(6). निष्क्रमण संस्कार (Nishkraman Sanskar)– निष्क्रमण का अर्थ है बाहर निकालना। शिशु का नाम रख लिए जाने के बाद भी उसे कुछ दिनों के लिए मां के पास ही रखा जाता है। निष्क्रमण् संस्कार के तहत पहली बार नवजात शिशु को सूर्य तथा चन्द्रमा की ज्योति दिखाने का विधान है। जन्म के चौथे महीने इस संस्कार को करने का विधान है।
(7). अन्नप्राशन संस्कार (Annaprashana Sanskar)– जन्म से छठे महीने में उसका अन्नप्राशन संस्कार होता है। जिसमें शिशु को चांदी की कटोरी या थाली में रखा भोजन परोसा जाता है।
(8). चूड़ाकर्म/मुंडन संस्कार (Mundan Sanskar)- आचार्यो ने बालक के पहले, तीसरे या पांचवें वर्ष में इस संस्कार को करने का विधान बताया है। मुंडन संस्कार का अभिप्राय है कि जन्म के समय उत्पन्न अपवित्र बालों को हटाकर बालक को प्रखर बनाना है।
(9). कर्णवेध या कर्ण-छेदन संस्कार (Karnavedh Sanskar)– वैज्ञानिक भाषा में इसे एक्यूपंक्चर कहा जाता है। जिसके अनुसार एक्यूपंक्चर से व्यक्ति का दिमाग शांत होता है और उसके दिल की गति सामान्य रहती है। इससे श्रवण शक्ति बढ़ती है और कई रोगों की रोकथाम हो जाती है।
(10). विद्या आरंभ संस्कार (Vidhya Arambha Sanskar)- प्रचीन काल में जब गुरुकुल की परम्परा थी तो बालक को वेदाध्ययन के लिये भेजने से पहले घर में अक्षर बोध कराया जाता था। शुभ मुहूर्त में ही विद्यारम्भ संस्कार शुरू होता है और इसके बाद बच्चा अपनी पढाई शुरू करता है।
(11). उपनयन या यज्ञोपवित संस्कार (Yagyopaveet Sanskar)– यज्ञोपवीत (संस्कृत संधि विच्छेद= यज्ञ+उपवीत) उप यानी पास और नयन यानी ले जाना, गुरू के पास ले जाने का अर्थ है-उपनयन संस्कार. इसमें बालक को जनेऊ पहना जाता है।
- सूत से बना वह पवित्र धागा जिसे यज्ञोपवीतधारी व्यक्ति बाएँ कंधे के ऊपर तथा दाईं भुजा के नीचे पहनता है।
(13). केशांत संस्कार (Keshant Sanskar)– केशांत संस्कार अर्थ है केश यानी बालों का अंत करना। गुरुकुल में वेदाध्ययन पूर्ण कर लेने पर आचार्य के समक्ष यह संस्कार सम्पन्न किया जाता था।
(14). समावर्तन संस्कार (Samavartan Sanskar)- समावर्तन संस्कार अर्थ है फिर से लौटना। गुरुकुल से शिक्षा प्राप्ति के बाद व्यक्ति को फिर से समाज में लाने के लिए यह संस्कार किया जाता था।
(15). विवाह संस्कार (Vivah Sanskar)– यज्ञोपवीत से समावर्तन संस्कार तक ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने के बाद बालक को विवाह कर गृहस्थ जीवन की शुरूआत करने का अधिकार मिलता है। विवाह संस्कार सर्वाधिक महत्वपूर्ण संस्कार माना जाता है। इसके अंतर्गत वर और वधू दोनों साथ रहकर धर्म के पालन का संकल्प लेते हुए विवाह करते हैं। विवाह के द्वारा सृष्टि के विकास में योगदान दिया जाता है। इसी संस्कार से व्यक्ति पितृऋण से मुक्त होता है।
- शास्त्रों में आठ प्रकार के विवाहों का उल्लेख है- ब्राह्म, दैव, आर्ष, प्रजापत्य, आसुर, गन्धर्व, राक्षस एवं पैशाच।
- हिन्दूधर्म के अनुसार पिता और माता को मुखाग्नि देने का अधिकार केवल पुत्र का है।
- आज भी शवयात्रा के आगे घर से अग्नि जलाकर ले जाई जाती है। इसी से चिता जलाई जाती है।
- आशय है विवाह के बाद व्यक्ति ने जो अग्नि घर में जलाई थी उसी से उसके अंतिम यज्ञ की अग्नि जलाई जाती है।
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