पुरी जगन्नाथ की रथयात्रा (Puri Jagannath Rath Yatra) 2018

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उत्कल प्रदेश के प्रधान देवता श्री जगन्नाथ जी ही माने जाते हैं। यहाँ के वैष्णव धर्म की मान्यता है कि राधा और श्रीकृष्ण की युगल मूर्ति के प्रतीक स्वयं श्री जगन्नाथ जी हैं।
आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को ओडिशा के पुरी नामक स्थान और गुजरात के द्वारकापुरी में ''भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा'' बड़ी धूमधाम से निकाली जाती है। इस उत्सव के दौरान श्रद्धालुओं का भक्ति भाव देखते ही बनता है क्योंकि जिस रथ पर भगवान सवारी करते हैं उसे घोड़े या अन्य जानवर नहीं बल्कि श्रद्धालुगण ही खींच रहे होते हैं। 

  1. पुरी में श्री जगदीश भगवान को सपरिवार विशाल रथ पर आरुढ़ कराकर भ्रमण करवाया जाता है फिर वापस लौटने पर यथास्थान स्थापित किया जाता है।
  2. पुरी में जिस रथ पर भगवान की सवारी चलती है वह विशाल एवं अद्वितीय है। वह 45 फुट ऊंचा, 35 फुट लंबा तथा इतना ही चौड़ाई वाला होता है। इसमें सात फुट व्यास के 16 पहिये होते हैं। इसी तरह बालभद्र जी का रथ 44 फुट ऊंचा, 12 पहियों वाला तथा सुभद्रा जी का रथ 43 फुट ऊंचा होता है। इनके रथ में भी 12 पहिये होते हैं।
  3. स्कन्द पुराण में स्पष्ट कहा गया है कि रथ-यात्रा में जो व्यक्ति श्री जगन्नाथ जी के नाम का कीर्तन करता हुआ गुंडीचा नगर तक जाता है वह पुनर्जन्म से मुक्त हो जाता है। 
  4. नारियल, लाई, गजामूंग और मालपुआ का प्रसाद विशेष रूप से इस दिन मिलता है।  
  5. रथयात्रा के तीसरे दिन पंचमी को लक्ष्मी जी भगवान जगन्नाथ को ढूँढ़ते यहाँ आती हैं। तब द्वैताधिपति भगवान जगन्नाथ दरवाज़ा बंद कर देते हैं जिससे लक्ष्मी जी नाराज़ होकर रथ का पहिया तोड़ देती है और हेरा गोहिरी साही पुरी का एक मुहल्ला जहाँ लक्ष्मी जी का मन्दिर है, वहाँ लौट जाती हैं। बाद में भगवान जगन्नाथ लक्ष्मी जी को मनाने जाते हैं।
  6. भगवान मंदिर के सिंहद्वार पर बैठकर जनकपुरी की ओर रथयात्रा करते हैं। जनकपुरी में तीन दिन का विश्राम होता है जहां उनकी भेंट श्री लक्ष्मीजी से होती है। इसके बाद भगवान पुनः श्री जगन्नाथ पुरी लौटकर आसनरुढ़ हो जाते हैं।
  7. श्री जगन्नाथ जी की रथयात्रा में भगवान श्री कृष्ण के साथ राधा या रुक्मिणी नहीं होतीं बल्कि बलराम और सुभद्रा होते हैं।
  8. जगन्नाथ जी का रथ 'गरुड़ध्वज' या 'कपिलध्वज' कहलाता है। रथ पर जो ध्वज है, उसे 'त्रैलोक्यमोहिनी' या ‘नंदीघोष’ रथ कहते हैं। 
  9. बलराम जी का रथ 'तलध्वज' के नाम से पहचाना जाता है। रथ के ध्वज को 'उनानी' कहते हैं। जिस रस्सी से रथ खींचा जाता है वह 'वासुकी' कहलाता है। 
  10. सुभद्रा का रथ 'पद्मध्वज' कहलाता है। रथ ध्वज 'नदंबिक' कहलाता है। इसे खींचने वाली रस्सी को 'स्वर्णचूडा' कहते हैं।
  11. सर्वप्रथम बलभद्र का रथ तालध्वज प्रस्थान करता है। थोड़ी देर बाद सुभद्रा की यात्रा शुरू होती है। अंत में लोग जगन्नाथ जी के रथ को बड़े ही श्रद्धापूर्वक खींचते हैं।
  12. जगन्नाथ जी की यह रथयात्रा गुंडीचा मंदिर पहुंचकर संपन्न होती है। 'गुंडीचा मंदिर' वहीं पर स्थित है जहां विश्वकर्मा जी ने तीनों देव प्रतिमाओं का निर्माण किया था। यह भगवान की मौसी का घर भी माना जाता है।
  13. आषाढ़ शुक्ल दशमी को जगन्नाथ जी की वापसी यात्रा शुरू होती है।
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