सामान्य अध्ययन(H/8) : "भारतीय इतिहास एवं संस्कृति" के व्याख्यात्मक सामान्य प्रश्नोत्तरी (10000 Quiz Series)
इतिहास (H/8) : "भारतीय इतिहास एवं संस्कृति" के व्याख्यात्मक सामान्य प्रश्नोत्तरी (10000 Quiz Series)
भारतीय इतिहास एवं संस्कृति : Quiz No. 176 से 200 तक |
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स्वामी विवेकानंद अनमोल वचन......." उठो, जागो और तब तक मत रूको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए"
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Quiz-176. आधुनिक भारत में 'स्थानीय स्वायत्त शासन का अग्रणी' किसे माना जाता है?- लार्ड रिपनविस्तार-
- लॉर्ड रिपन का पूरा नाम 'जॉर्ज फ़्रेडरिक सैमुअल राबिन्सन' था। यह 1880 ई. में लॉर्ड लिटन प्रथम के बाद भारत के वायसराय बनकर आये थे।
- लॉर्ड रिपन ने सर्वप्रथम समाचार-पत्रों की स्वतन्त्रता को बहाल करते हुए 1882 ई. में 'वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट' को समाप्त कर दिया।
- इनके सुधार कार्यों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कार्य था- 'स्थानीय स्वशासन' की शुरुआत।
विस्तार-
- समुद्रगुप्त का जन्म लिच्छवि राजकुमारी कुमार देवी के गर्भ से हुआ था। इस साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र थी। समुद्रगुप्त ने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की।
- समुद्रगुप्त एक असाधारण सैनिक योग्यता वाला महान विजित सम्राट था। विन्सेट स्मिथ ने इन्हें नेपोलियन की उपधि दी।
विस्तार-
- 'माँ कामाख्या' के इस भव्य मंदिर का निर्माण कोच वंश के राजा चिलाराय ने 1565 में करवाया था, लेकिन आक्रमणकारियों द्वारा इस मंदिर को क्षतिग्रस्त करने के बाद 1665 में कूच बिहार के राजा नर नारायण ने दोबारा इसका निर्माण करवाया है।
विस्तार-
- इसमें राज्यवर्धन द्वारा मालवा नरेश देवगुप्त एवं अन्य राजाओं पर विजय का और शशांक का शत्रुगृह (शशांक के घर) में वध का भी उल्लेख है।
- हर्ष बौद्ध धर्म की महायान शाखा का समर्थक होने के साथ-साथ विष्णु एवं शिव की भी स्तुति करता था।
विस्तार-
- 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में औरेल स्टीन (Aurel Stein) ने पण्डित गोविन्द कौल के सहयोग से राजतरंगिणी का अंग्रेजी अनुवाद कराया।
विस्तार-
- गोनंद वंश का अंतिम नरेश बालादित्य पुत्रहीन था। उसने अपनी कन्या का विवाह दुर्लभवर्धन से किया जिसने कर्कोट वंश की स्थापना लगभग 627 ई. में की।
विस्तार-
- वाकाटक वंश का संस्थापक 'विंध्यशक्ति' था।
- प्रवरसेन बड़ा ही शक्तिशाली राजा था। इसने चारों दिशाओं में दिग्विजय करके चार बार 'अश्वमेध यज्ञ' किये और वाजसनेय यज्ञ करके सम्राट का गौरवमय पद प्राप्त किया।
- वाकाटक नरेश प्रवरसेन द्वितीय की रुचि साहित्य में भी थी। उन्होंने 'सेतुबंध' नामक ग्रंथ की रचना की।
विस्तार-
- प्रथम सती होने का प्रमाण 510 ई. के भानु गुप्त के एरण के अभिलेख से मिलता है, जिसमें किसी गोपराज नामक सेनापति की मृत्यु पर उसकी पत्नी के सती होने का उल्लेख है।
- 'एरण' जो कि मध्य प्रदेश के सागर ज़िले में विदिशा के निकट बेतवा नदी के किनारे स्थित है, वहाँ से एक अभिलेख प्राप्त हुआ है, जो 510 ई. का है। इसे भानुगुप्त का अभिलेख कहते हैं।
विस्तार-
- मालविकाग्निमित्रम् कालिदास द्वारा रचित संस्कृत नाटक है। यह पाँच अंकों का नाटक है जिसमे मालवदेश की राजकुमारी मालविका तथा विदिशा के राजा अग्निमित्र का प्रेम और उनके विवाह का वर्णन है।
विस्तार-
- अंतिम कर्कोट राजा के हाथ से अवंतिवर्मन् ने शासन की बागडोर छीन उत्पल राजवंश का आरंभ किया। इस राजकुल के राजाओं में प्रधान अवंतिवर्मन् और शंकरवर्मन् थे।
विस्तार-
- सन 1699 में बैसाखी के दिन उन्होने खालसा पन्थ की स्थापना की जो सिखों के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है।
- गुरू गोबिन्द सिंह ने सिखों की पवित्र ग्रन्थ गुरु ग्रंथ साहिब को पूरा किया तथा उन्हें गुरु रूप में सुशोभित किया।
विस्तार-
- संधिविग्रहिक महादण्डनायक हरिषेण, समुद्रगुप्त के समय में 'सन्धिविग्रहिक कुमारामात्य' एवं 'महादण्डनायक' के पद पर कार्यरत था।
- हरिषेण का पूरा लेख 'चंपू (गद्यपद्य-मिश्रित) शैली' का एक अनोखा उदाहरण है।
विस्तार-
- चन्द्र्गुप्त के सिंहासनारोहण के अवसर पर (320ई.) इसने नवीन सम्वत (गुप्त सम्वत) की स्थापना की।
विस्तार-
- सूर्य सिद्धांत कई सिद्धान्त-ग्रन्थों के समूह का नाम है। यह भारतीय खगोलशास्त्र का प्रसिद्ध ग्रन्थ है। जो ६ठी शताब्दी के आरम्भिक चरण में रचित हुए माने जाते हैं।
विस्तार-
- राधास्वामी मत के संस्थापक परम पुरुश पुरन धनी हुजूर स्वामी जी महाराज है। इनका जन्म नाम श्री शिव दयाल सिह् साहब है।
- 15 फ़रवरी सन 1861 को बसन्त पन्चमी के दिन राधास्वामी मत आम लोगो के लिये जारी कर दिया। राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य परम गुरु हुजुर सत्सन्गी साहब (परम पूज्य डा प्रेम सरन सत्सन्गी) है। इनका निवास स्थान आगरा मे दयालबाग है।
विस्तार-
- कुमारसंभव महाकवि कालिदास विरचित कार्तिकेय के जन्म से संबंधित महाकाव्य जिसकी गणना संस्कृत के पंच महाकाव्यों में की जाती है।
विस्तार-
- रचनाकार अमरसिंह बताये जाते हैं जो चन्द्रगुप्त द्वितीय (चौथी शब्ताब्दी) के नवरत्नों में से एक थे।
विस्तार-
- ह्वेन त्सांग की भारत यात्रा का वृतांत हमें चीनी ग्रंथ ‘सी यू की‘ एवं ह्मुली की पुस्तक 'Life of lliven Tsang' में मिलता है।
- ह्वेन त्सांग ब्राह्मण जाति का ‘सर्वाधिक पवित्र एवं सम्मानित जाति‘ के रूप में उल्लेख करता है। क्षत्रियों की कर्तव्यपरायणता की प्रशंसा करता हुआ उसे ‘राजा की जाति‘ बताता है और वैश्यों का वह व्यापारी के रूप में उल्लेख करता है। ह्वेन त्सांग के विवरण के अनुसार उस समय मछुआरों, कलाई, जल्लाद, भंगी जैसी जातियां नगर सीमा के बाहर निवास करती थीं।
विस्तार-
- भरहुत भारत के मध्य प्रदेश राज्य में सतना जिले में स्थित एक स्थल है। यह स्थान बौद्ध स्तूप और कलाकृतियों के लिए प्रसिद्ध है।
विस्तार-
- इस विश्वविद्यालय में तीन श्रेणियों के आचार्य थे जो अपनी योग्यतानुसार प्रथम, द्वितीय और तृतीय श्रेणी में आते थे। नालंदा के प्रसिद्ध आचार्यों में शीलभद्र, धर्मपाल, चंद्रपाल, गुणमति और स्थिरमति प्रमुख थे।
- 7वीं सदी में ह्वेनसांग के समय इस विश्व विद्यालय के प्रमुख शीलभद्र थे जो एक महान आचार्य, शिक्षक और विद्वान थे।
विस्तार-
- प्रसिद्ध साहित्यकार जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित नाटक 'स्कंदगुप्त' का नायक है।
- यह स्त्री का रूप धारण कर ध्रुवस्वामिनी के बदले शांती का प्रस्ताव रखने वाले शासक शकराज से द्वंद्व युद्ध कर उसे मौत के घाट उतार देता है।
विस्तार-
- रामगुप्त, शकों द्वारा पराजित हुआ और अत्यन्त अपमानजनक सन्धि कर अपनी पत्नी ध्रुवस्वामिनी को शकराज को भेंट में दे दिया था, लेकिन उसका छोटा भाई चन्द्रगुप्त द्वितीय बड़ा ही वीर एवं स्वाभिमानी व्यक्ति था।
- चन्द्रगुप्त द्वितीय, छद्म भेष में ध्रुवस्वामिनी के वेश में शकराज के पास गया। फलतः रामगुप्त निन्दनीय होता गया। तत्पश्चात् चन्द्रगुप्त द्वितीय ने अपने बड़े भाई रामगुप्त की हत्या कर दी। उसकी पत्नी से विवाह कर लिया और गुप्त वंश का शासक बन बैठा।
विस्तार-
- फ़ाहियान, एक चीनी बौद्ध भिक्षु, यात्री, लेखक एवं अनुवादक थे जो 399 से लेकर 412 तक भारत, श्रीलंका और आधुनिक नेपाल में स्थित गौतम बुद्ध के जन्मस्थल कपिलवस्तु धर्मयात्रा पर आए।
विस्तार-
- विष्णुगुप्त, कुमारगुप्त का पुत्र और पुरगुप्त का पोता था| (540-550 ई.तक)
- अंतिम ज्ञात शिलालेख विष्णुगुप्त (दमोदरपुर तांबे-प्लेट शिलालेख) के शासनकाल में है, जिसमें उन्होंने 542/543 ई. में कोटिवर्षा (पश्चिम बंगाल में बंगाड़) में भूमि अनुदान दिया है।
विस्तार-
- चन्द्रगुप्त ने एक 'गुप्त संवत' 319 ई. में चलाया, इसी तिथि को चंद्रगुप्त प्रथम का राज्याभिषेक हुआ था।
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