सामान्य अध्ययन(H/3) : "भारतीय इतिहास एवं संस्कृति" के व्याख्यात्मक सामान्य प्रश्नोत्तरी (10000 Quiz Series)
इतिहास (H/3) : "भारतीय इतिहास एवं संस्कृति" के व्याख्यात्मक सामान्य प्रश्नोत्तरी (10000 Quiz Series)
भारतीय इतिहास एवं संस्कृति : Quiz No. 51 से 75 तक |
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स्वामी विवेकानंद अनमोल वचन......." उठो, जागो और तब तक मत रूको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए"
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Quiz-51.'उत्तररामचरित्रम' के लेखक कौन हैं?- भवभूतिविस्तार-
- भवभूति, संस्कृत के महान कवि एवं सर्वश्रेष्ठ नाटककार थे। इनके पिता का नाम नीलकंठ और माता का नाम जतुकर्णी था। इनके गुरु का नाम 'ज्ञाननिधि' था।
विस्तार-
- मौर्य राजवंश के बाद शासन किया। इसका शासन उत्तर भारत में 187 ई.पू. से 75 ई.पू. तक यानि 112 वर्षों तक रहा था।
- पुष्यमित्र शुंग उत्तर भारत के शुंग साम्राज्य के संस्थापक और प्रथम राजा थे।
विस्तार-
- अश्वमेध यज्ञ, अयोध्या में पुष्यमित्र का एक शिलालेख प्राप्त हुआ है, जिसमें उसे 'द्विरश्वमेधयाजी' कहा गया है। इससे सूचित होता है, कि पुष्यमित्र ने दो बार अश्वमेध यज्ञ किए थे।
विस्तार-
- पुष्यमित्र शुंग के शासनकाल में पतंजलि वर्तमान थे। महाभाष्य के निश्चित साक्ष्य के आधार पर विजयोपरांत पुष्यमित्र के श्रौत (अश्वमेध यज्ञ) में संभवत: पतंजलि पुरोहित थे।
विस्तार-
- नरेन्द्रमण्डल(अंग्रेज़ी: Chamber of Princes) भारतवर्ष का एक पूर्व विधान मंडल था। यह ब्रिटिशकालीन भारत के विधान मंडल का एक उच्च व शाही सदन था।
- इस्की बैठक "संसद भवन" के तीसरे कक्ष में होती थी जिसे अब "सांसदीय पुस्तकालय" में परिवर्तित कर दिया गया है।
- नरेंद्र मंडल की स्थापना सन 1920 में ब्रिटेन के राजा सम्राट जौर्ज (पंचम) के शाही फ़रमान द्वारा 23 दिसम्बर 1919 को हुई थी|
- नरेंद्र मंडल की पहली बैठक 8 फ़रवरी 1921 को हुई थी। शुरुआती दिनों में इस सदन में कुल 120 सदस्य थे। इनमें से 108 सदस्यों को स्थाई सदस्यता हासिल थी। अन्य बचे हुए 12 सीटें, आवर्ती आधार पर, आन्य 127 आस्थाई रियासतों का प्रतिनिधित्व करते थे। इस प्रतिनिधित्व प्रणाली में भारत की कुल 562 रियासतों में से 327 छोटी रियासतों का प्रतिनिधित्व के लिये कोई जगह नहीं थी।
विस्तार-
- नौरोजी को 'भारतीय राजनीति का पितामह' कहा जाता है। वह दिग्गज राजनेता, उद्योगपति, शिक्षाविद और विचारक भी थे।
- 1851 में गुजराती भाषा में 'रस्त गफ्तार' साप्ताहिक निकालना प्रारम्भ किया।
- नौरोजी ने 'ज्ञान प्रसारक मण्डली' नामक एक महिला हाई स्कूल एवं 1852 में 'बम्बई एसोसिएशन' की स्थापना की। लन्दन में रहते हुए दादाभाई ने 1866 ई. मे 'लन्दन इण्डियन एसोसिएशन' एवं 'ईस्ट इंडिया एसोसिएशन' की स्थापना की।
- उनकी कृति पॉवर्टी ऐंड अन-ब्रिटिश रूल इन इंडिया 'राष्ट्रीय आंदोलन की बाइबिल' कही जाती है।
- 1886 व 1906 ई. में वह 'इंडियन नेशनल कांग्रेस' के अध्यक्ष बनाए गए।
- दादाभाई नौरोजी 'धन के बहिर्गमन के सिद्धान्त' के सर्वप्रथम और सर्वाधिक प्रखर प्रतिपादक थे। 1905 ई. में उन्होंने कहा था कि "धन का बहिर्गमन समस्त बुराइयों की जड़ है और भारतीय निर्धनता का मुख्य कारण।"
- पहली बार स्वराज शब्द का प्रयोग किया। उन्होंने कहा, हम कोई कृपा की भीख नहीं माँग रहे हैं। हमें तो न्याय चाहिए।
विस्तार-
- दिल्ली सल्तनत का प्रशासन अरबी-फारसी पद्धति पर आधारित थी। इस प्रशासन का केन्द्र बिन्दु राजा या सुल्तान था।
- चूँकि मुस्लिम शासन पद्धति धार्मिक पुस्तक कुरान पर आधारित थी और मुस्लिम जगत में पैगम्रुबर के बाद खलीफा ही सर्वोच्च धार्मिक व्यक्ति रह गया था।
- दिल्ली की केन्द्रीय सेना को हश्म-ए-वल्ब कहा जाता था जबकि प्रान्तीय सेना को हश्म-ए-अतरफ कहा जाता था। शाही घुड़सवार सेना को सवार-ए-कल्ब कहते थे। प्रान्तीय घुड़सवार सेना को सवार-ए-अतरफ कहते थे।
नोट:-सल्तनत कालीन सेना में तुर्क अमीर, ईरानी मंगोल, अफगानी एवं भारतीय मुसलमान सम्मिलित थे।
विस्तार-
- वैष्णव संत रामानुजाचार्य विशिष्टाद्वैत वेदान्त के प्रवर्तक थे। रामानुजाचार्य की शिष्य परम्परा में ही रामानन्द हुए जिनके शिष्य कबीर और सूरदास थे।
- रामानुज का जन्म दक्षिण भारत के तमिलनाडु में हुआ था। इनकी माता का नाम कांतिमती और पिता श्री केशवाचार्य थे।
- रामानुजाचार्य आलवार सन्त यमुनाचार्य के मुख्य शिष्य थे। गुरु की इच्छानुसार रामानुज ने ब्रह्मसूत्र, विष्णु सहस्रनाम और दिव्य प्रबन्धम् की टीका लिखी
- गृहस्थ आश्रम त्याग कर श्रीरंगम् के यदिराज नामक सन्यासी से सन्यास की दीक्षा ली। मैसूर के श्रीरंगम् से चलकर रामानुज शालिग्राम नामक स्थान पर रहने लगे। रामानुज ने उस क्षेत्र में 12 वर्ष तक वैष्णव धर्म का प्रचार किया।
- इन्होंने कांची में यादव प्रकाश नामक गुरु से वेदाध्ययन किया।
- उन्होंने सात ग्रन्थों की रचना की। श्रीभाष्यम्, गीता भाष्यम्, वेदार्थ संग्रह, वेदान्त द्वीप, वेदान्तसार, गद्यत्रय,और आराधना ग्रन्थ |
विस्तार-
- इसका उल्लेख ऋग्वेद में केवल एक बार है। बृहद्देवता में शतुद्री या सतलुज और विपाशा का एक साथ उल्लेख है।
- ब्यास नदी का पुराना नाम ‘अर्जिकिया’ या ‘विपाशा’ था।
विस्तार-
- मुईज़ुद्दीन बहरामशाह(1236) एक मुस्लिम तुर्की शासक था, जो दिल्ली का छठा सुल्तान बना। बहराम इल्तुतमिश का पुत्र एवं रजिया सुल्तान का भाई था।
- सुल्तान के अधिकार को कम करने के लिए तुर्क सरदारों ने एक नये पद ‘नाइब’ अर्थात 'नाइब-ए-मुमलिकात' का सृजन किया। इस पद पर नियुक्त व्यक्ति संपूर्ण अधिकारों का स्वामी होता था।
- मुइज़ुद्दीन बहरामशाह के समय में इस पद पर सर्वप्रथम मलिक इख्तियारुद्दीन एतगीन को नियुक्त किया गया। अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के लिए एतगीन ने बहरामशाह की तलाक़शुदा बहन से विवाह कर लिया।
विस्तार-
- अलीनगर की संधि, 9 फ़रवरी 1757 ई. को बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला और ईस्ट इंडिया कम्पनी के बीच हुई, जिसमें अंग्रेज़ों का प्रतिनिधित्व क्लाइव और वाटसन ने किया था। अंग्रेज़ों द्वारा कलकत्ता पर दुबारा अधिकार कर लेने के बाद यह संधि की गई।
- इस संधि पर हस्ताक्षर करने के एक महीने बाद अंग्रेज़ों ने इसका उल्लघंन कर, कलकत्ता से कुछ मील दूर गंगा नदी के किनारे की फ़्राँसीसी बस्ती चन्द्रनगर पर आक्रमण करके उस पर अपना अधिकार कर लिया।
- इस षड़यंत्र के परिणाम स्वरूप 23 जून, 1757 ई. को प्लासी की लड़ाई हुई, जिसमें सिराजुद्दौला हार गया तथा मारा गया।
विस्तार-
- नौरोज़ या नवरोज़, ईरानी नववर्ष का नाम है, मुख्यतः ईरानियों द्वारा दुनिया भर में मनाया जाता है। इसके साथ ही कुछ अन्य नृजातीय-भाषाई समूह जैसे भारत में पारसी समुदाय भी इसे नए साल की शुरुआत के रूप में मनाते हैं।
- पारसी धर्म ईरान का प्राचीन काल से प्रचलित धर्म है। ये ज़न्दअवेस्ता नाम के धर्मग्रंथ पर आधारित है। इसके प्रस्थापक महात्मा ज़रथुष्ट्र हैं, इसलिये इस धर्म को ज़रथुष्ट्री धर्म (Zoroastrianism) भी कहते हैं।
विस्तार-
- नागर वास्तुकला में वर्गाकार योजना के आरंभ होते ही दोनों कोनों पर कुछ उभरा हुआ भाग प्रकट हो जाता है जिसे 'अस्त' कहते हैं।
- यह शिखा कला उत्तर भारत में सातवीं शताब्दी के पश्चात् विकसित हुई अर्थात परमार शासकों ने वास्तुकला के क्षेत्र में नागर शैली को प्रधानता देते हुए इस क्षेत्र में नागर शैली के मंदिर बनवाये।
- इस शैली के मंदिर मुख्यतः मध्य भारत में पाए जाते है| जैसे-कंदरिया महादेव मंदिर(खजुराहो), लिंगराज मंदिर-भुवनेश्वर(ओड़िसा ), जगन्नाथ मंदिर -पुरी(ओड़िसा), कोणार्क का सूर्य मंदिर-कोणार्क(ओड़िसा ),मुक्तेश्वर मंदिर-(ओड़िसा ),खजुराहो के मंदिर - मध्य प्रदेश, दिलवाडा के मंदिर -आबू पर्वत(राजस्थान ),सोमनाथ मंदिर-सोमनाथ (गुजरात)
विस्तार-
- अशोक(ईसा पूर्व 269 - 232) प्राचीन भारत में मौर्य राजवंश का राजा था। अशोक का देवानाम्प्रिय एवं प्रियदर्शी आदि नामों से भी उल्लेख किया जाता है।
- कलिंग युद्ध में हुए नरसंहार तथा विजित देश की जनता के कष्ट से अशोक की अंतरात्मा को तीव्र आघात पहुँचा।
- 260 ई. पू. में अशोक ने कलिंगवसियों पर आक्रमण किया, उन्हें पूरी तरह कुचलकर रख दिया। युद्ध की विनाशलीला ने सम्राट को शोकाकुल बना दिया और वह प्रायश्चित्त करने के प्रयत्न में बौद्ध विचारधारा की ओर आकर्षित हुआ।
विस्तार-
- विक्रम संवत अत्यन्त प्राचीन संवत है।'विक्रम संवत' का प्रणेता सम्राट विक्रमादित्य को माना जाता है। कालिदास इस महाराजा के एक रत्न माने जाते हैं।
- भारत का सर्वमान्य संवत 'विक्रम संवत' ही है और महाराज विक्रमादित्य ने देश के सम्पूर्ण ऋण को, चाहे वह जिस व्यक्ति का रहा हो, स्वयं देकर इसे चलाया।
विस्तार-
- आजीवक सम्प्रदाय की स्थापना गोशाला ने की थी,जो गौतम बुद्ध का समकालीन था। उनके विचार 'सामंज फल सुत्त' तथा 'भगवतीसूत्र' में मिलते हैं।
विस्तार-
- ऋग्वैदिक समाज की सबसे छोटी इकाई परिवार या कुल होती थी। ऋग्वेद में 'कुल' शब्द का उल्लेख नहीं है। परिवार के लिए 'गृह' शब्द का प्रयुक्त हुआ है।
- 'शतपथ ब्राह्मण' में पत्नी को पति की अर्द्धांगिनी बताया गया है।
- ऋग्वेद में ही गायत्री मन्त्र है जो सविता(सूर्य) को समर्पित है।
- 'असतो मा सद्गमय' वाक्य ऋग्वेद से लिया गया है।
विस्तार-
- एक और वर्ग 'पणियों' का था जो धनि थे और व्यापार करते थे|
विस्तार-
- 'वीर पूजा' तथा 'सती पूजा' का भी प्रचलन समाज में था।
- 'मुरुगन' दक्षिण भारत का सबसे अधिक लोकप्रिय देवता था। जो कालान्तर में मुरुगन ही 'सुब्रह्मण्यम' कहा गया, और स्कन्द-कार्तिकेय से इस देवता का एकीकरण किया गया।
- मुरुगन का एक अन्य नाम 'वेल्लन' भी मिलता है।
विस्तार-
- कालीबंगा, राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले में घग्घर नदी के बाएं तट पर स्थित है। खुदाई 1953 में 'बी.बी. लाल' एवं 'बी.के. थापड़' द्वारा करायी गयी।
- यहाँ पर प्राक् हड़प्पा एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष मिले हैं। यह प्राचीन समय में चूडियों के लिए प्रसिद्ध था। ये चूडियाँ पत्थरों की बनी होती थी।
विस्तार-
- बक्सर का युद्ध 23 अक्टूबर 1764 में बक्सर नगर के आसपास ईस्ट इंडिया कंपनी और मुगल नबाबों के बीच लड़ा गया था।
- बंगाल के नबाब मीर कासिम, अवध के नबाब शुजाउद्दौला, तथा मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना अंग्रेज कंपनी से लड़ रही थी।
- लड़ाई में अंग्रेजों की जीत हुई और इसके परिणामस्वरूप पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, उड़ीसा और बांग्लादेश का दीवानी और राजस्व अधिकार अंग्रेज कंपनी के हाथ चला गया।
विस्तार-
- सेना के लिए 'दीवान-ए-अर्ज' की स्थापना बलबन की थी।
- एक शहर या सौ गाँवों के शासन की देख-भाल ‘अमीर-ए-सदा’ नामक अधिकारी करता था।
विस्तार-
- गुलबर्ग किला, कर्नाटक के गुलबर्ग जिले में स्थित है। मूल रूप से इसका निर्माण वारंगल राजवंश के राज में राजा गुलचंद ने करवाया था।
- गुलबर्ग 1347 से 1424 तक बहमनी साम्राज्य की राजधानी था और गुलबर्ग किला राजधानी का मुख्यालय था। 1424 में राजधानी बीदर ले जायी गयी।
विस्तार-
- हड़प्पा पूर्व एवं हड़प्पाकालीन इस स्थल की खुदाई 1973-74 ई. में 'रवीन्द्र सिंह विष्ट' के नेतृत्व में की गयी।
- यहाँ दुर्ग तथा निचला नगर अलग-अलग न होकर एक ही प्राचीर से घिरे थे।
- इसके अतिरिक्त मिट्टी के बर्तन, गोलियाँ, मनके, तांबे के बाण्राग, हल की आकृति के खिलौने आदि मिले हैं।
- बनवाली में जल निकास प्रणाली का अभाव दिखाई देता है।
- बणावली की नगर योजना-शतरंज के बिसात या जाल के आकार की बनायी गयी थी|
- सड़कें न तो सीधी मिलती थी न तो एक दूसरे को समकोण पर काटती थी।
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