राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ( National Green Tribunal ) - NGT
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राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण अधिनियम, 2010 द्वारा भारत में एक राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) की स्थापना की गई है। जून 1992 में पर्यावरण और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के रियो डी जनेरियो शिखर सम्मेलन के दौरान, भारत ने प्रदूषक पीड़ितों और अन्य पर्यावरणीय क्षति के लिए न्यायिक और प्रशासनिक उपाय प्रदान करने के लिए भाग लेने वाले राज्यों की प्रतिज्ञा की।
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राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण अधिनियम, 2010 द्वारा भारत में एक राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) की स्थापना की गई है। जून 1992 में पर्यावरण और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के रियो डी जनेरियो शिखर सम्मेलन के दौरान, भारत ने प्रदूषक पीड़ितों और अन्य पर्यावरणीय क्षति के लिए न्यायिक और प्रशासनिक उपाय प्रदान करने के लिए भाग लेने वाले राज्यों की प्रतिज्ञा की।
- 02 जून, 2010 को भारत में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल कानून अस्तित्व में आया।
- नेशनल ग्रीन ट्रीब्यूनल एक संवैधानिक संस्था है।
- 18 अक्टूबर 2010 को, न्यायमूर्ति लोकेश्वर सिंह पोंता पहले अध्यक्ष बने।
- 18 अक्टूबर 2010 को इस अधिनियम के तहत पर्यावरण से संबंधित कानूनी अधिकारों के प्रवर्तन एवं व्यक्तियों और संपत्ति के नुकसान के लिए सहायता और क्षतिपूर्ति देने या उससे संबंधित या उससे जुड़े मामलों सहित, पर्यावरण संरक्षण एवं वनों तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित मामलों के प्रभावी और त्वरित निपटारे के लिए राष्ट्रीय हरित अधिकरण की स्थापना की गयी।
- एनजीटी एक विशिष्ट निकाय है जो बहु-अनुशासनात्मक समस्याओं वाले पर्यावरणीय विवादों को संभालने के लिए आवश्यक विशेषज्ञता द्वारा सुसज्जित है।
- यह प्राधिकरण (ट्रिब्यूनल), सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC), 1908 के अंतर्गत निर्धारित प्रक्रिया द्वारा बाध्य नहीं होगा, बल्कि नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित किया जाएगा।
- एनजीटी का मुख्यालय दिल्ली में है। इसकी चार क्षेत्रीय शाखाएं पुणे, भोपाल, चेन्नई और कोलकाता में स्थापित की गई हैं। इसके अलावा जरूरत के हिसाब से इसकी अन्य शाखाएं बनाई जा सकती हैं।
- एनजीटी के चेयरमैन सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज होते हैं। उनके साथ न्यायिक सदस्य के रूप में हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त जज होते हैं।
- चेयरपर्सन - न्यायाधीश, श्री स्वतन्त्र कुमार
- सदस्य - न्यायाधीश, डॉ.पी.ज्योतिमणि (चेन्नई बेंच)
- सदस्य - न्यायाधीश, यू.डी.साल्वी (नई दिल्ली बेंच)
- सदस्य - न्यायाधीश, दिलीप सिंह (भोपाल बेंच)
- सदस्य - न्यायाधीश, एम. शशिधरन नम्बीयर (नई दिल्ली बेंच)
- सदस्य - न्यायाधीश, जावेद रहीम (नई दिल्ली बेंच)
- सदस्य - न्यायाधीश, रघुवेंद्र सिंह राठौड़ (नई दिल्ली बेंच)
- सदस्य - न्यायाधीश, सोनम फिन्टोस वांगडी (कोलकाता बेंच)
- जल (रोक और प्रदूषण नियन्त्रण अधिनियम, 1974)
- वन संरक्षण कानून 1980
- जल (रोक और प्रदूषण नियंत्रण) उपकर कानून, 1977
- वायु (रोक और प्रदूषण नियन्त्रण) अधिनियम 1981
- पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986
- पब्लिक लायबिलिटी इन्श्योरेंस कानून 1991
- जैव विविधता कानून 2002
- वन्य जीव संरक्षण कानून 1972, भारतीय वन कानून 1927 और राज्य द्वारा जंगल और पेड़ की रक्षा के कानून एनजीटी के क्षेत्राधिकार में नहीं आते हैं।
- एनजीटी में आवेदन डालने का तरीका बहुत ही सरल है। क्षति-पूर्ति के मामलों में दावे की रकम की एक फीसदी राशि अदालत में जमा करनी होती है। पर जिन मामलों में क्षति-पूर्ति की बात नहीं होती है, उसमें मात्र एक हजार रु. की फीस ली जाती है।
- भारत के संविधान में 1976 में संशोधनों के द्वारा दो महत्त्वपूर्ण अनुच्छेद 48 (ए) {राज्य सरकार को निर्देश} तथा 51 (ए) {नागरिकों का कर्तव्य} जोड़े गए। इससे पहले संविधान में पर्यावरण के सम्बन्ध में कोई प्रावधान नहीं था।
- एमसी मेहता बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (एफआईआर 2001 एससी 1948) में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि वाहनों के कारण दिल्ली में अत्यधिक वायु प्रदूषण होता है, जिससे मनुष्य के जीवन के अधिकार का हनन होता है। इसलिए निर्देश दिए गए कि दिल्ली में सार्वजनिक वाहनों को सीएनजी से चलाए।
- चर्च ऑफ गॉड इन इंडिया बनाम केके आर मजेस्टिक कॉलोनी वेलफेयर एसो. (एफआईआर 2000 एससी 2773) याचिका में ध्वनि प्रदूषण पर न्यायालय ने सख्ती दिखाई और कहा कि ध्वनि प्रदूषण के कारण अनुच्छेद 21 में दिए अधिकार का उल्लंघन होता है।
कोर्ट और ट्रिब्यूनल में क्या अन्तर है?
- ट्रिब्यूनल (न्यायाधिकरण) यानी एक विशेष कोर्ट। वह क्षेत्र विशेष सम्बन्धी मामलों को ही लेता है। जैसे एनजीटी में पर्यावरण, रक्षा, वनों के संरक्षण, इससे जुड़ी क्षति-पूर्ति या लोगों को हुए नुकसान आदि के बारे में ही निर्णय लिए जाते हैं।
- कोर्ट ( न्यायालय ), इसमें अनेक मामले आते हैं, जो विविध विषय पर आधारित होते हैं।
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